मुक्तक : 785 – जहन्नुम Posted on December 2, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments मर्ज़ इक तो लाइलाज़ उस पर ये तुर्रा कर्क है ॥ ज़िंदगी पूरी जहन्नुम , एक रौरव नर्क है ॥ फिर भी रोके है हमें तू ज़ह्र पीने से अरे , ख़ुदकुशी के वास्ते इस से बड़ा क्या तर्क है ? ( कर्क =कैंसर , रौरव =एक भयानक नर्क ,तर्क =दलील ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 184