मुक्तक : 787 – नहीं कोई मेरा अपना Posted on December 7, 2015 /Under मुक्तक /With 0 Comments ख़ुद पे ख़ुद का दिल तहेदिल से लुटाता हूँ ॥ ख़ुद को ख़ुद के ही गले कसकर लगाता हूँ ॥ क्योंकि बनता ही नहीं कोई मेरा अपना , ख़ुद को ख़ुद का आईना तक मैं बनाता हूँ ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 260