ग़ज़ल : 177 – छूट-छूट के ॥
जो दिल में मेरे ग़म भरा है कूट-कूट के ॥
रो-रो उसे निकाल दूँगा फूट-फूट के ॥1।।
मेरा तो क्या किसी का हो सके न जो कभी ,
मेरा उसी से दिल लगा रे टूट-टूट के ॥2।।
मुश्किल से हाथ आए थे जो मुझको काट-काट ,
सब फड़फड़ा उड़े वो तोते छूट-छूट के ॥3।।
जो-जो जमा किया था बैरी सब तो ले गया ,
कुछ माँग-माँग के तो कुछ को लूट-लूट के ॥4।।
मत पूछ जबसे मैं जुड़ा हूँ उससे किस क़दर ,
करता हूँ एक तरफ़ा प्यार टूट-टूट के ?5।।
कब तक जिऊँगा रोज़-रोज़ इस तरह अगर ,
याद उसकी आएगी गले को घूट-घूट के ?6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति