मुक्तक : 798 – कौआ समझते थे ॥ Posted on January 13, 2016 /Under मुक्तक /With 0 Comments चंद्रमा को एक जुगनूँ सा समझते थे ॥ श्वेतवर्णी हंस को भँवरा समझते थे ॥ आज जाना जब हुआ वो दूर हमसे सच , स्वर्ण-मृग को हम गधे ; कौआ समझते थे ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 114