मुक्तक : 802 – नग्नाटक ॥ Posted on January 31, 2016 /Under मुक्तक /With 0 Comments दे चुका जीवन का मैं हर मूल्य हर भाटक ॥ जबकि मुझ पर खुल रहा अब मृत्यु का फाटक ॥ वस्त्र – आभूषण से रहता था लदा कल तक , आज गलियों में मैं घूमूँ बनके नग्नाटक ॥ ( भाटक =किराया ,फाटक =द्वार ,नग्नाटक =सदा नंगा घूमने वाला साधु ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 110