■ मुक्तक : 805 – मेरे घर अब नहीं आते ॥ Posted on February 7, 2016 /Under मुक्तक /With 0 Comments बुलाए बिन चले आते थे वो पर अब नहीं आते ।। निमंत्रण भेजने पर भी मेरे घर अब नहीं आते ।। मैं पहले जैसे ही दाने बिखेरे नित्य बैठूँ पर , न जाने क्यों मेरी छत पर कबूतर अब नहीं आते ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,622