■ मुक्तक : 812 – कब मिटाती हैं मुझे ? Posted on March 2, 2016 /Under मुक्तक /With 0 Comments ग़मज़दा हरगिज़ नहीं ये मुझको करतीं शाद हैं ॥ कब मिटातींं हैं मुझे ? करतीं ये बस आबाद हैं ॥ कौन कहता है कि मेरा रहनुमा कोई नहीं ? मुझको मेरी ठोकरें सबसे बड़ी उस्ताद हैं ॥ ( शाद =प्रसन्न ,रहनुमा =पथप्रदर्शक ,उस्ताद =गुरु ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,337