■ मुक्तक : 821 – अर्क-ए-गुलाब Posted on April 13, 2016 /Under मुक्तक /With 0 Comments पानी तलब करो मैं ला दूँ , अर्क-ए-गुलाब ।। गर तुम कहो तो इक सफ़्हा क्या , लिख दूँ मैं किताब ।। हसरत है तुम जो माँँगो दूँ वो , उससे बढ़के तुमको , बदले में दो जो अपना सच्चा , प्यार बेहिसाब ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,569