■ मुक्तक : 824 – तक़्दीर कहेगी बालम ॥
हँसके जीने भी नहीं देते जो लोग आज मुझे ,
मेरे मरने पे मनाएँगे ग़ज़ब का मातम ।।
आज लगती है मेरी चाल उन्हें बेढब सी ,
कल मेरे तौर-तरीक़ों पे चलेगा आलम ।।
वक़्त बेशक़ जो मुझे आज दुलत्ती मारे ,
बात तक़्दीर मेरी कोई भी सुनती न अभी ;
लेकिन इक रोज़ दुलारेगा यही वक़्त मुझे ,
ये ही तक़्दीर मुझे चूम कहेगी बालम ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति