मुक्तक : 843 – मेरे खिलते ही Posted on May 30, 2016 /Under मुक्तक /With 0 Comments मेरे खिलते ही पूरा मुझको भी तोड़ा जाता ॥ यूँ ही गुलशन में मुझ कली को न छोड़ा जाता ॥ ख़ूबसूरत भी तो नहीं न मुअत्तर हूँ मैं , वर्ना मुझको भी इत्र को न निचोड़ा जाता ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 1,541