*मुक्त-मुक्तक : 863 – दिल की बात ? Posted on October 16, 2016 /Under मुक्तक /With 0 Comments दो-चार-दस न बीस साल बल्कि ताहयात ॥ करवट बदल-बदल के,जाग-जाग सारी रात ॥ समझोगे कैसे तुम दिमाग़दारों ख़ब्त में ; मैंने तो की है शायरी में सिर्फ़ दिल की बात ? ( ताहयात = सारा जीवन , ख़ब्त = पागलपन ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 112