*मुक्त-मुक्तक : 866 – ये तेरा जिस्म Posted on November 10, 2016 /Under मुक्तक /With 0 Comments तू सिर से पाँव तक बेशक निहायत खूबसूरत है ॥ ये तेरा जिस्म संगेमरमरी कुदरत की मूरत है ॥ नहीं बस नौजवानों की , जईफ़ों की भी अनगिनती ; तू सचमुच मलिका-ए-दिल है , मोहब्बत है , ज़रूरत है ॥ ( जईफ़ों = वृद्धों ) –डॉ. हीरालाल प्रजापति 119