■ गीत : 48 – माँगता हूँ
माँगता हूँ जो वही साथी मुझे देना ।।
और जितना चाहूँ उतना ही मुझे देना ।।
तितलियाँ माँगूँ तो देना तितलियाँ लाकर ।
चीटियाँ माँगूँ तो देना चीटियाँ लाकर ।
सौंपना चूहा ही यदि चूहा मँगाऊँ मैं ,
मत कभी उसकी जगह हाथी मुझे देना ।।
माँगता हूँ जो वही साथी मुझे देना ।।
और जितना चाहूँ उतना ही मुझे देना ।।
फूल माँगा जाए तो कलियाँ न ले आना ।
फल मँगाया जाए तो फलियाँ न ले आना ।
चाहिए कोंपल तो देना मत मुझे पत्ता ,
मैं तना माँगूँ तो मत डाली मुझे देना ।।
माँगता हूँ जो वही साथी मुझे देना ।।
और जितना चाहूँ उतना ही मुझे देना ।।
ऊन माँगूँ ऊन के गोले बना लाना ।
सूत माँगूँ सूत के लच्छे बना लाना ।
टाट माँगूँ तो न देना तुम मुझे मख़मल ,
औ’ न रेशम की जगह खादी मुझे देना ।।
माँगता हूँ जो वही साथी मुझे देना ।।
और जितना चाहूँ उतना ही मुझे देना ।।
यदि कहूँ लोहा तो लोहा ला पटकना तुम ।
यदि कहूँ पीतल तो पीतल आ के रखना तुम ।
मैं खरा सोना जो चाहूँ तुमसे रत्ती भर ,
उसके बदले मत किलो चाँदी मुझे देना ।।
माँगता हूँ जो वही साथी मुझे देना ।।
और जितना चाहूँ उतना ही मुझे देना ।।
यदि कहूँ मैं चर्च चलने चर्च चल पड़ना ।
यदि कहूँ गुरुद्वारा गुरुद्वारे निकल पड़ना ।
मैं मदीना चाहूँ तो देना न तुम मक़्क़ा ,
मथुरा के एवज़ मुझे काशी नहीं देना ।।
माँगता हूँ जो वही साथी मुझे देना ।।
और जितना चाहूँ उतना ही मुझे देना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति