*मुक्त-मुक्तक : 867 – दर खुला पिंजरे का रख Posted on March 15, 2017 /Under मुक्तक /With 0 Comments मुझसे बंदर को कहे कूदूँ न मैं , उछलूँ न मैं ! दर खुला पिंजरे का रख बोले कभी निकलूँ न मैं ! बर्फ़ हूँ यह जानकर दुश्मन मेरा मुझको पकड़ , धूप में रखकर ये कहता है मुझे पिघलूँ न मैं !! -डॉ. हीरालाल प्रजापति 112