■ मुक्तक : 874 – औरों को गिराने गड्ढे में Posted on January 5, 2018 /Under मुक्तक /With 0 Comments औरों को गिराने गड्ढे में ख़ुद डूब कुएँ में बैठे हैं ।। ग़ैरों को हराने में अपना सब हार जुएँ में बैठे हैं ।। उनको न नज़र आ जाएँ बस ये सोचके उनके ही आगे , कुछ दूर किसी गीली लकड़ी से उठते धुएँ में बैठे हैं ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,594