■ मुक्तक : 885 – सूखा तालाब Posted on April 28, 2018 /Under मुक्तक /With 0 Comments कैसा ये अजीबोग़रीब मेरा जहाँ है ? बरसात के मौसम में भी तो सूखा यहाँ है !! सोना न , न चाँदी , न हीरे-मोती समझना तालाब में ढूँढूँ मैं अपने पानी कहाँ है ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,605