■ मुक्तक : 886 – रिक्शे सी ज़िन्दगी Posted on June 9, 2018 /Under मुक्तक /With 0 Comments अजगर जहाँ में मैं भी , अब बन गरुड़ रहा हूँ ।। मंज़िल पे रख निगाहें , कहीं भी न मुड़ रहा हूँ ।। रिक्शे सी ज़िन्दगी को , कर दूँ मैं कार कैसे ? ये सोच-सोच पंखों , के बिन ही उड़ रहा हूँ ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,307