■ मुक्तक : 887 – धृतराष्ट्र Posted on September 21, 2018 /Under मुक्तक /With 0 Comments बैठे-ठाले मन रंजन को अपना धंधा बोल न तू ।। बोगनविलिया के फूलों को रजनीगंधा बोल न तू ।। जिनके मन के दृग हों फूटे , उनको कह धृतराष्ट्र बुला , किंतु कभी बस चर्म के चक्षुविहीन को अंधा बोल न तू ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,274