■ मुक्तक : 891 – दुशाला Posted on December 23, 2018 /Under मुक्तक /With 0 Comments चहुँदिस स्वयं को मैंने जिससे लपेट डाला ।। ऊनी नहीं न है वो मृत वन्य मृग की छाला ।। चलते हैं शीत लहरों के तीर जब बदन पे , बन ढाल प्राण रक्षा करता मेरा दुशाला ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,287