■ मुक्तक : 892 – मौत Posted on April 7, 2019 /Under मुक्तक /With 0 Comments हर जगह ही ज़िंदगी पर मौत भारी है ।। ज़िंदगी भी मौत से हर बार हारी है ।। फिर ज़माने में ज़माने से मैं हैराँ हूँ , ज़िंदगी और मौत की क्यों जंग जारी है ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,336