■ मुक्तक : 898 – ज़ुर्म Posted on May 8, 2019 /Under मुक्तक /With 0 Comments ज़ुर्म वो साज़िशन रोज़ करते रहे ।। दूसरे उसका ज़ुर्माना भरते रहे ।। ज़ख़्म तो फूल ही दे रहे थे मगर , सारा इल्ज़ाम काँटों पे धरते रहे ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,044