मुक्तक Posted on June 22, 2019 /Under मुक्तक /With 0 Comments सब्र से कुर्सी पे भी सच बैठते कब हैं ? नींद भी लेते खड़े ही लेटते कब हैं ? हर तरफ़ माहौल बेशक़ ख़ूबसूरत है , आँख रखकर भी मगर हम देखते कब हैं ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 316