मुक्तक : 900 – ग़म का छुपाना
किसी गिर पड़े को झपट कर उठाना ।।
किसी ज़ख़्म खाए को मरहम लगाना ।।
ये आदत तुम्हारी नहीं ताज़ा-ताज़ा ,
है ये शौक़ तुममें निहायत पुराना ।।
हमें सब पता है कि क्या माज़रा है ,
कि क्या मग़्ज़े सर में क्या दिल में भरा है ?
तुम्हारा ये हर वक़्त का मुस्कुराना ,
हमें सिर्फ़ लगता है ग़म का छुपाना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति