■ मुक्तक : 903 – गैया Posted on July 14, 2019 /Under मुक्तक /With 0 Comments अनुमान भी तुम सच न लगा पाओगे भैया ; किस धुन में मैं बैठा हूँ चराते हुए गैया ? दिखता हूँ किनारे पे मगर हूँ मैं भँवर में , क्या पार लगेगी रे मेरी कागज़ी नैया ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,280