मुक्तक : 906 ( B ) – पत्तल Posted on July 28, 2019 /Under मुक्तक /With 0 Comments किस पाप की सख़्त सज़ा चुप ऐसे काट रहा है ? इतना भी है क्यों बेकस वो कभी जो लाट रहा है ? हैराँ हूँ कई पेटों का वो पालनहार ही आख़िर – क्यों ख़ुद भूख में जूठी पत्तल चाट रहा है ? ( बेकस = असहाय , लाट = लार्ड शब्द का अपभ्रंश ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 197