■ मुक्तक : 906 – बोलो न अहमक़
जो बेमौत मारे गए या मरे ख़ुद ,
उन्हें तुम किसी हक़ से बोलो न अहमक़ !!
गर इतना जो हो जाता दुनिया में शायद ,
ज़मीं फिर तो हो जाती जन्नत बिलाशक़ !!
नदी-कूप पर होता प्यासों का क़ब्ज़ा ,
ग़रीबों , फ़क़ीरों का दौलत पे कुछ हक़ ,
ज़रूरी जो होता वो होता सभी पे ,
तो फिर ख़ुदकुशीे क्यों कोई करता नाहक़ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति