मुक्तक : 909 – बरसात Posted on August 4, 2019 /Under मुक्तक /With 0 Comments उड़-दौड़-चलते-चलते थक स्यात् रुक गई है ।। हो-होके ज्यों झमाझम दिन-रात चुक गई है ।। छतरी न थी तो सर पर दिख-दिख टपक रही थी , आते ही छत के नीचे बरसात लुक गई है ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 335