मुक्तक : 913 – स्वप्न Posted on August 13, 2019 /Under मुक्तक /With 0 Comments दादुर उछल शिखी को नचना सिखा रहा है ।। ज्ञानी को अज्ञ अपनी कविता लिखा रहा है ।। उठ बैठा चौंककर मैं जब स्वप्न में ये देखा , इक नेत्रहीन सुनयन को अँख दिखा रहा है ।। ( दादुर = मेंढक , शिखी = मोर , अज्ञ = मूर्ख ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 126