■ मुक्तक : 930 – हँसी Posted on October 26, 2019 /Under मुक्तक /With 0 Comments यों तो ये सब जाने हैं हम कम ही हँसते हैं ; और ये भी है पता जब जब भी हँसते हैं ; ग़ालिबन फिर इस जहाँ के क़हक़हों पर भी , जो पड़े भारी ; हँसी कुछ ऐसी हँसते हैं ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 5,348