मुक्तक : 932 – अनगढ़ Posted on October 31, 2019 /Under मुक्तक /With 0 Comments उतरता रहा हूँ कि चढ़ता रहा मैं ? मगर इतना तय है कि बढ़ता रहा मैं ।। कभी भी किसी बुत को तोड़ा न मैंने , हमेशा ही अनगढ़ को गढ़ता रहा मैं ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 132