■ मुक्तक : 935 – सूरज
जो पकड़ पाता नहीं खरगोश का बच्चा ,
अपनी इक मुट्ठी में गज-ऊरज पकड़ डाला ।।
जो न गुब्बारा फुला सकता , बजाने को ,
आज उसने हाथ में तूरज पकड़ डाला ।।
आज तो जानूँ न क्या-क्या मुझसे हो बैठा ?
पत्थरों में फूल के मैं बीज बो बैठा ।
धूप में भी जो झुलस जाता है रात उसने ,
दोपहर का स्वप्न में सूरज पकड़ डाला ।।
( गज-ऊरज = बलिष्ठ हाथी , तूरज = तुरही जिसे उच्च शक्ति से फूँककर बजाया जाता है )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति