मुक्तक : 940 – भूख Posted on December 23, 2019 /Under मुक्तक /With 0 Comments हाँ कई दिन से न था खाने को मेरे पास कुछ ।। आगे भी रोटी के मिलने की नहीं थी आस कुछ ।। भूख में इंसाँ को अपने मार मैं पशु बन गया , जाँ बचाने को चबाने लग गया मैं घास कुछ ।। – डॉ. हीरालाल प्रजापति 135