■ मुक्तक : 943 – मिर्ची Posted on December 28, 2019 /Under मुक्तक /With 0 Comments मिर्ची ही गुड़ समझकर हँस-हँस चबा रहे हैं ।। तीखी है पर न आँखें टुक डबडबा रहे हैं ।। कुछ हो गया कि चाकू से काटते हैं पत्थर , पानी को मुट्ठियों में कस-कस दबा रहे हैं !! -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,228