■ मुक्तक : 316 – रातों में Posted on August 20, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments रातों में यक़ींं है कि दोपहर का आफ़्ताब ॥ ऊग आए अमावस में ताबदार माहताब ॥ दीवाने का हर्फ़-हर्फ़ , लफ़्ज़-लफ़्ज़ हो सहीह , चेहरे से ज़रा सा अगर उठा दे तू नक़ाब ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,353