■ मुक्तक : 875 – लुकता Posted on January 28, 2018 /Under मुक्तक /With 0 Comments मत ज़रा भी सोचना , आख़िर गया हूँ मैं किधर ? ढूँढना भी मत कहीं , जा कर उधर या आ इधर ।। गिरके तेरी नज़रों से , तुझसे ही तो बचने को मैं , उस जगह जा छिप गया , कोई नहीं लुकता जिधर ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,194