मुक्तक : 953 – वकालत Posted on May 12, 2020 /Under मुक्तक /With 0 Comments काग़ज़ से भी ज़ियादा पतली है मेरी हालत ।। होती ही जाए दिन-दिन ये ज़िन्दगी तवालत ।। फ़िक़्रे मआश उस पर नाकाम इश्क़ के ग़म , फिर भी शराब की मैं करता नहीं वकालत ।। ( तवालत = सिरदर्द , झंझट / फ़िक़्रे मआश = रोज़गार की चिंता ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 302