मेरी नज़र ने ऐसा , मंज़र कभी न पाया !!
बेसाख़्ता उसे तक , दिल में ख़याल आया ।।
जितना है वज़्न उसका , उससे बहुत ज़ियादा ,
होगा मेरा तो भारी , घटता हुआ भी साया ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति
अच्छा मुक्तक है।
ब्लॉग का यह फार्मेट नहीं जमा जी।
इससे न तो फीड आती है और टिप्पणी करने में भी बहुत झमेला है।
समय की कमी सबके पास होती है।
अतः कोई इस झमेले में नहीं पड़ेगा कि वह नाम और ईमेल के साथ वेबसाइड भी टाइप करे।
अपनी इस अप्रिय टिप्पणी के लिए क्षमा चाहता हूँ।
सही कहा सर,
आजकल हर गरीब के पास जरूरत से ज्यादा दुख है, और हर अमीर के पास जरूरत से ज्यादा सुख है।
जी , बिलकुल…. यही विसंगति वर्ग संघर्ष की जननी है ।
अच्छा मुक्तक है।
ब्लॉग का यह फार्मेट नहीं जमा जी।
इससे न तो फीड आती है और टिप्पणी करने में भी बहुत झमेला है।
समय की कमी सबके पास होती है।
अतः कोई इस झमेले में नहीं पड़ेगा कि वह नाम और ईमेल के साथ वेबसाइड भी टाइप करे।
अपनी इस अप्रिय टिप्पणी के लिए क्षमा चाहता हूँ।