■ मुक्तक : 977 – ख़्वाब Posted on June 14, 2020 /Under मुक्तक /With 2 Comments हैं नहीं मुम्किन कुछ ऐसी , मंज़िलों के ख़्वाब पाले ।। हाँ सहारो – थार में मैं , बादलों के ख़्वाब पाले ।। इक जुनूनी की तरह क्यों ,पाँव नंगे चल पड़ा हूँ , हाथ में इक बीज लेकर , जंगलों के ख़्वाब पाले ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,767
खूब।।
धन्यवाद ।