■ मुक्तक : 980 – फ़रार Posted on June 24, 2020 /Under मुक्तक /With 0 Comments इस जहाँ की भीड़ में , निपट अकेला छोड़कर ।। यूँ गया कि ज्यों हुआ , फ़रार मुँह को मोड़कर ।। काश कह गया वो होता लौट कर न आएगा , रखते हम न उससे अब , तलक भी दिल को जोड़कर ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 1,609