■ मुक्तक : 996 – रोज़गार की महत्ता Posted on August 12, 2020 /Under मुक्तक /With 0 Comments आँखें तो क्या हैं बल्ब सा ये सिर भी फूट जाए ।। क्या फ़िक्र हाथ – पाँव कोई काट – कूट जाए ।। लाज़िम मगर है मेरी नाक की सलामती को , छूटे न रोज़गार चाहे साँस छूट जाए ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 5,113