[] नज़्म []
जाने किस हाल में है , है वो ख़ुश कि है ग़मगीं ?
जाओ ढूँढो उसे , छुपा नहीं वो खोया है ;
सच न देखूँगा और कुछ भी मैं ज़माने में ,
अब तो आँखों से उसका ही नज़ारा लूँगा हाँ ।।
उसका मुझसे न मिलने आना ये बताता है ,
उसके पाँवों में कितनी बेड़ियाँ पड़ी होंगीं ?
ऐसे कैसे मैं मान लूँ कि वो न आएगा ?
मैं ज़रूर उसका इंतज़ार नित करूँगा हाँ ।।
एक कहता है ग़ैर का वो हो चुका अब तो ,
दूजा बोले कि मुझसे अब वो ऊब बैठा है ,
सब उसे बेवफ़ा का नाम खुलके देते हैं ,
मैं मगर उसको अब भी देवता कहूँगा हाँ ।।
उसको देना ही चाहा , उससे कुछ नहीं चाहा ;
मैंने सचमुच किया है उससे इश्क़े लाफ़ानी ।
उसका मैं क्या हूँ ये मुझे नहीं पता लेकिन ,
वो मेरे वास्ते है ज्यों समक को हो पानी ।
मेरा बेशक़ है लाइलाज मर्ज़ पर तै है ,
मेरे मरने की वज़्ह ये कभी नहीं होगी ;
मेरे जीने को सच न साँस वो जरूरी है ,
वो है जब तक कि ज़िंदा मैं नहीं मरूँगा हाँ ।।
( इश्क़ ए लाफ़ानी = अमर्त्य प्रेम , समक = मछली )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति