■ मुक्तक : 1002 – तमन्ना
मुझको उसने न सिर्फ़ आँखों में जगह दी थी ,
बल्कि दिल में भी चंद रोज़ को बसाया था ।।
उसको बेशक़ कभी न मेरी थी तमन्ना पर ,
मैंने बढ़चढ़ उसी के ख़्वाबों को सजाया था ।।
हो रहा था वो मुझसे हाय जब पराया रे ;
उसने सीने से जाते-जाते भी लगाया रे ;
कब न उसने कहा था ? मुझसे मत कभी रोना ,
मैंने फिर भी तो ख़ुद को इश्क़ में फँसाया था ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
वाह
शुक्रिया ।