मुक्तक : नाचीज़
अब तेरी नज़रों में मैं कुछ भी नहीं , तू निगाहों को मेरी नाचीज़ है ।। ना मैं तेरी […]
अब तेरी नज़रों में मैं कुछ भी नहीं , तू निगाहों को मेरी नाचीज़ है ।। ना मैं तेरी […]
अजनबी क्या , ग़ैर क्या , दुश्मन तलक जाकर , गर मैं चाहूॅं तो यक़ीं कर , जुड़ भी […]