वो सुंदर लड़की

वो छुपकर बादलों की ओट से सुंदर सी इक लड़की ,
मेरी दो बूॅंद भर की याचना पर अपने ऑंगन में –
रखे सारे कुऍं मेरी गगरिया के लिए भरने ,
उठाकर अपने सिर पर झट चली आती है बरखा बन ।।
मैं उससे भूलकर संकेत में भी माॅंग लूॅं कुछ बस ,
कि जैसे चाहिए चूल्हा जलाने को मुझे लकड़ी ,
मेरे पाॅंवों में ला-लाकर वो रख देती जगत भर के ,
कहीं से ढूॅंढकर सूखे फटाफट काट चंदन वन ।।
मुझे क्या-क्या है आवश्यक तत्क्षण जान लेती है ,
निवेदन तक तो करने का नहीं देती मुझे अवसर ,
कभी अनुरोध यदि उससे करूॅं दो-चार पैसों का ,
वो गुल्लक तोड़ चट अपनी लुटाती मुझपे सारा धन ।।
उसे मुझसे , शपथ है हो न निःसंदेह किंचित प्रेम ।।
मुझे उससे हुआ जाता है पल-प्रतिपल असीमित प्रेम ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति