परिंदा

जबसे तूने कर दिया हमको नज़र अंदाज़ हम ,
इक परिंदा होके भूले जाऍं सच परवाज़ हम ।।
जी तो चाहे हम करें तुझसे शिक़ायत चीखकर ,
पर कहें कैसे कि रो-रो खो चुके आवाज़ हम ?
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति