टेसू
हाॅं ! ये कोमलता में कम होने के कारण से ,
हरसिंगारों से नि:संशय कम लहकता है ।।
हमने माना ये गुलाबों सा , चमेली सा ,
केतकी सा , मोगरों सा कब महकता है ।।
किंतु लगता है विरह संवेदना में सच ,
बस यही रहता निरत सल्लेखना में सच ,
कोयले भी हो रहे जब आजकल पत्थर ,
शांत हो एकांत में टेसू दहकता है ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति