ऑंखें
न मानोगे तो मत मानो , क़सम तो मैं नहीं खाता ।।
इशारे जो न समझे उसको मैं कहके न समझाता ।।
छतों से चंद लोगों को गरुड़ भी इक सुआ लगता ,
क़ुतुब मीनार से अजगर मरा सा केंचुआ लगता ,
बहुत ऊॅंचाई से भी देखता हूॅं तब भी तो सच्ची ,
मुझे चींटी लगे चींटी ; लगे हत्ती मुझे हत्ती ।।
मेरी नज़रों में जो राई वो राई है , जो तिल , तिल है ,
मेरी ऑंखों को क्या बोलूॅं ? मेरी ऑंखें मेरा दिल है ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति