लेखक

नाम : डॉ. हीरालाल प्रजापति
शिक्षा :
एम.ए. / एम.फिल्. / पी-एच.डी. ( हिंदी )
व्यवसाय : गेस्ट लेक्चरर के रूप में मध्यप्रदेश के विभिन्न शासकीय महाविद्यालयों में हिंदी साहित्य का अध्यापन ।
निवास : इटारसी (मध्यप्रदेश ), भारत।

आत्मीय पाठकों ,

    प्रत्येक व्यक्ति के लिखने के व्यक्तिगत कारण होते हैं किंतु अधिकांशतः लेखन का प्रधान कारण यशोलिप्सा को ही पाया गया है , अब यह अलग बात है कि उसे अपने लेखन से प्रसिद्धि मिल पाती है या नहीं ; क्योंकि अनेकानेक बार यह अवसरों पर निर्भर करती है फलस्वरूप कई अलेखक या अकवि , लिक्खाड़ या महाकवि बज उठते हैं और कई अच्छे लेखक दीर्घ काल तक अवसर की अनुपलब्धता के कारण निराश होकर लिखना ही छोड़ बैठते हैं…..इस दृष्टि से लेखन या काव्य कर्म पीड़ादायी है जबकि विशुद्ध शौक़ के तौर पर परम आह्लादकारी । मैं यह कदापि नहीं कह रहा हूँ कि मुझे प्रसिद्धि नहीं चाहिए , किंतु जब कोई पढ़ेगा ही नहीं तो जानेगा कैसे ? अतः इस अच्छा लिखने के बावजूद भी लोगों के न पढ़ने के कारण अपने लेखन को एक ही भाव अनवरत रख सकता है वह है लिखने का ख़ालिस शौक़ ।

यह शायद फ़नी लगे किंतु मेरे लिए लेखन के हेतु और प्रयोजन कुल मिलाकर ऐसे समझे जा सकते हैं कि जैसे मच्छर के कोहनी या गाल पर काट लेने के बाद आप जब तक खुजली नहीं कर लेते आपको चैन नहीं पड़ता , आप ठुकरा कर गिर जाएँ तो जब तक आप उठ नहीं जाते आप उठने को तड़पते रहते हैं ; ठीक ऐसे ही जब मैं कहीं भी कभी भी घनीभूत भावुकता से लबालब भर उठता हूँ ; तो बस लिखने का मौक़ा मिलते ही लिखने भिड़ जाता हूँ । क्यों लिख डालता हूँ ये तो पता नहीं , किंतु लिखकर एक ऐसे अतुलनीय आराम और ऐसी अद्वितीय तृप्ति का अनुभव होता है कि जैसे कोई काँटा निकल गया हो , मच्छर के काटे स्थान पर जी भर कर खुजला लिया हो अथवा इससे पहले कि कोई मुझे गिरा हुआ देखे मैं स्वयं उठकर कर खड़ा हो गया हूँ । सच ।

     आलोचक या यूँ कहूँ कि निंदक मेरी रचनाओं में विधा के नाम पर जो चाहे त्रुटियाँ निकालते रहें किंतु मैंने अपनी सारी ग़ज़लें इस एक ही सूत्र वाक्य पर लिखी हैं कि मत्ले की प्रथम पंक्ति की क्रमबद्ध मात्राओं , क़ाफ़िया और रदीफ़ का मक़्ते की अंतिम पंक्ति तक कठोरता से अनुपालन करना है । मुक्तकों की मात्रा गणना करते समय भी ग़ज़लों की तक़्तीअ की तरह यदाकदा किंतु सहज आवश्यकतानुसार निर्धारित मात्रा पतन नियम का सहारा लिया है । कुछ कविताएँँ लिखी हैं , चंद गीत लिखे हैं , कतिपय कहानियाँ और इक्का-दुक्का  लेखों पर भी हाथ आज़माकर मैं तो प्रायः संतुष्ट हूँँ कि मैंने अपना ग़ुबार निकाल लिया है किंतु आप मेरे लेखकीय कर्म को कितना सार्थक मानते हैं यह आप कमेंट करके मुझे अवगत कराएँगे तो धन्यभाग समझूँगा । यद्यपि आप मेरी अपेक्षा समझ रहे हैं तथापि परंपरानुसार “आप मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब करें , शेअर करें ” यह मुझे कहना ही पड़ेगा अन्यथा आप कहेंगे कि आपने तो कहा ही नहीं । हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा ।

धन्यवाद ।

आपका अपना –

-डॉ. हीरालाल प्रजापति