धर्मभीरु भर घृणा से करते हैं आपस में बत । धर्म से च्युत ईश्वर से सर्वथा हूँँ मैं विरत ।। पूछते रहते हैं मैं क्यों नास्तिक हूँँ तो सुनो । पूर्णत: ध्यानस्थ होकर तथ्यत: सर्वस गुनो ।। किंतु यह भी...Read more
बादलों से गिर धरा पर कड़कड़ाती बिजलियों को ।। जल से बाहर तड़फड़ाती फड़फड़ाती मछलियों को ।। फूल पर मंडराते भँवरों स्वस्थ-सुंदर तितलियों को ।। यदि करें स्वीकार तो शुभकामना नव वर्ष की ।। तंग गलियां सूनी सड़कों घर-मकानों के...Read more
खुल के अफ़वाहों का बाज़ार गर्म करता है ॥ सच के कहने को तू सौ बार शर्म करता है !! जब तू बाशिंदा है घनघोर बियाबानों का ॥ क्यों तू मालिक है शहर में कई मकानों का ? तुझसे सीखे कोई...Read more
मैं हूँ विरह मधुमास नहीं ॥ तड़पन हूँ नट , रास नहीं ॥ मुझको दुःख में पीर उठे , हँसने का अभ्यास नहीं ॥ उनके बिन जीना _मरना , क्यों उनको आभास नहीं ? उनका हर आदेश सुनूँ , पर मैं उनका दास नहीं ॥ दिखने में...Read more
उस घर में संसार भर में दूसरा कोई इससे अधिक किन्तु विश्वसुंदर अतुल्य फूल नहीं खिला किन्तु मैं आतुर हूँ उसकी तुलना करने को अतः अनवरत सोच में पड़ा हूँ कि किसकी उपमा दूँ उसे चाँद , सूरज या अन्य कोई और और तभी...Read more
[ चित्रांकन : डॉ. हीरालाल प्रजापति ] दुश्चरित्र को प्राप्त सौंदर्य या ब्रह्मचारी की कुरूपता , ज्ञानी की निर्धनता या मूर्ख की अमीरी , दुर्बल का आक्रोश अथवा बलवान का शांतत्व , अंधे के हाथ लगने वाली बटेर या देखते ही देखते आँखों...Read more