तेरी हर ख़्वाहिश तेरी फ़र्माइशों के वास्ते , बन पड़ेगा जिस तरह भी पर कमाकर जाउँगा ।। उम्र भर भी बैठकर तू खा सकेगा इस क़दर , तेरे ख़र्चों के लिए दौलत जमाकर जाउँगा ।। जाने क्यों लगता है मुझको...Read more
भेड़ों न बकरियों से मुझको कुछ दुलार है ।। गायों से भी न रंचमात्र प्यार-व्यार है ।। इनको चरा रहा हूँ अपना पेट पालने , मत चौंकिए ये मेरा सिर्फ़ रोज़गार है ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापतिRead more
जिनके क़द हों बौने जिनमें पत्ते तक बचे हों कम ; रखते हैं दरख़्त वे भी साये बाँटने का दम ।। और मालदारों से जो मुफ़्त कुछ मँगाइए , तब ही ये कहेंगे ” हाथ तंग है गदा हैं हम...Read more
कुछ उधेड़ने को लम्हा-लम्हा है अजीब पर , मुझसे पूरे होशमंद रह बुनाई की गई ।। प्यार के लिए फ़क़त हाँ सिर्फ़ प्यार के लिए , मुझसे हर जगह पे बेतरह लड़ाई की गई ।। झोपड़ों से मैं डरा रहा...Read more
देखो कि देखता हूँ मैं तुमको किस तरह से ? क्यों तुम न मुझको देखा करते हो इस तरह से ? सुधबुध को भूल अपनी अपलक निहारता है , कोई चकोर चंदा को ठीक जिस तरह से ।। -डॉ. हीरालाल...Read more