क्यों ?
सच कह रहा हूॅं चाहे , मानो या तुम न मानो , पैरों पे मेरे गिरकर , रो- रो […]
सच कह रहा हूॅं चाहे , मानो या तुम न मानो , पैरों पे मेरे गिरकर , रो- रो […]
वो मुझे दुत्कार कर अक्सर भगाते थे , दुम हिलाता मैं वहीं फिर भाग आता था ।। वह हमेशा […]
मुझे खौलने की ही आदत पड़ी थी , हिमालय सा मैं एकदम जम गया हूॅं ।। उसे देखने को […]
बेशक़ मैं यह काम करूॅं रोज़ाना लेकिन , यह मेरा व्यवसाय नहीं , उद्योग नहीं है ।। मैं कोशिश […]
होके मछली ज़मीं पे दौड़ूॅं मैं , बनके हाथी मैं उछलूॅं मेंढक सा ।। बाज से पंख रख भी […]
जिस तरह भी बन पड़ा पर दिल पे रखकर , फ़िक्र का एक-एक पर्वत ढो दिया है ।। कट […]
ख़्वाहिश में जिसकी दुनिया से उम्र भर लड़े हैं , अब भी उसी को पाने की ज़िद पे हम […]
वहाॅं पर लेटकर हमने बहुत आराम फ़रमाया , जहाॅं तशरीफ़ रखना भी लगे दुश्वार लोगों को ।। बहुत ही […]
लतीफ़े सुन रहा था और हॅंस-हॅंसकर परेशाॅं था , यक़ायक़ याद वो आया कि रोये-रोये चल बैठा ।। अमा […]
जिस्म मेरा , मेरा दिल और रूह भी मेरी चले , तुझ तलक बिन पैर के ही और बिन […]